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कोट : ढाल ११ : गा० १-६
Reaजनिकला
१-मन गमता सन्द रसाल,
अण गमता सन्द विकराल । गमता सन्द सुण्यां नहीं रीझे, अण गमता सुण्यां नहीं खीजें ॥
१-शब्द दो तरह के होते हैं-एक मन को अच्छे लगनेवाले मधुर शब्द और दूसरे मन । को बुरे लगनेवाले विकराल शब्द । ___ ब्रह्मचारी मनोज्ञ शब्दों को सुनकर प्रसन्न न हो और न अमनोज्ञ शब्दों को सुनकर द्वेष ही करे।
२-काला, पीला, लाल, नीला और सफेद इन पांच वर्णों के अनेक रूप होते हैं। अच्छे रूप को देखकर ब्रह्मचारी राग न करे और न बुरे रूप को देखकर द्वेष।
२-काला नीला राता पीला धोला, की पांच परकार नां रूप बोहला । ४. राग नाणे भला रूप देखती
माठा देख न आणणो धेख ।
३-गंध सुगंध दुगंध , दोय, :
गमता अण गमता सोय । एक गमता सं नहीं रति · सोय, ' - अण गमता सूं अरति न कोय ॥
__३-गन्ध दो प्रकार की होती है-एक सुगन्ध
और दूसरी दुर्गन्ध। सुगन्ध मन को अच्छी लगती है और दुर्गन्ध बुरी। ब्रह्मचारी मनोज्ञ गन्ध में रति न करे और न अमनोज्ञ गन्ध में अरति ।
४-रस पांच प्रकार के जानो। उनके स्वाद अनेक प्रकार के हैं। ब्रह्मचारी को मनोज्ञ रस में राग नहीं करना चाहिए और न अमनोज्ञ रस में द्वेष ।
४–रस पांच परकार ना जाणों,
त्यांरा स्वाद अनेक पिछांणों। * गमता सूं. राग न करणो, र अण गमता सूं घेष न धरणो ॥
५-फरस आठ परकार नां ताम,
त्यांरा : जूआ २, नांम। रागी गमतारोअण गमता रो धेखी, यां दोयां सं रहणों निरापेखी ॥
नापी
-स्पर्श आठ प्रकार के होते हैं। उनके नाम अलग-अलग हैं। मनुष्य मनोज्ञ स्पर्श से राग करने लगता है और अमनोज्ञ से द्वेष। ब्रह्मचारी को इन दोनों से निरपेक्ष रहना चाहिए।
६-सन्द रूप गन्ध रस फरस,
भला भंडा हलका भारी सरस । यां सं राग धेष करणो नांहीं, सील रहसी एहवा कोट मांहीं ॥
६-शब्द, रूप, गन्ध, रस तथा स्पर्श-अच्छे बुरे, सरस-विरस, हलके-भारी आदि होते हैं। ब्रह्मचारी को इनमें न तो राग करना चाहिए
और न द्वेष। यही दसवां कोट है जिसमें शील सुरक्षित रहता है।
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