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कोट
सब्द रूप गन्ध रस फरस, भला भूंडा हलका भारी सरस । यां सूं राग घेष करणो नाहीं, रहसी एहवा कोट मांही ॥ ढाल : ११.
दुहा
ब्रह्मचर्य री,
१ – ए नव बाड़ कही हिवें दसम कहें ए बाड़ लोपी तिण में मूल न चाले खोट ॥
छें कोट । वींटे रह्यो,
२– कोट भांगा जोखो छें बाड़ नें, बाड़ भांगा वरत नें जांण । तिण सूं कोट भिलण देवें नहीं, ते डाहा चतुर सुजाण ॥
३ - कोट भांग वघारा पडीयां थकां, बाड़ भांगतां किती एक बार । तिण सूं वशेष कोट रो, करवो जतन विचार ॥
४- सेर कोट सेंठों हुवें चिंता न पांमें लोक । ज्यू अडिग कोट ब्रह्मचर्य रो, तिण सूं सील न पांमें दोख * ॥
५- ते कोट करणो किण विध कलों, किण विध करणो जतन ।
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विवरा सुध,
सांभलजों
मन ॥
एक
१ — ब्रह्मचर्य की नव बाड़ कही जा चुकी हैं। अब दसवें कोट के बारे में कहता हूँ । यह कोट बाड़ों को बाहर से घेरे हुए हैं। इसमें जरा भी दोष नहीं चल सकता ।
२ - कोट के भंग होने से बाड़ों को जोखिम है और बाड़ों के खंडित होने से व्रत को । इसलिए बुद्धिमान और ज्ञानी पुरुष कोट को गिरने नहीं देते।
३- कोट भंग होकर यदि वह दरार' युक्त हो जाय तो बाड़ों के भग्न होने में कितना समय लगेगा ? यह विचार कर कोट का विशेष रूप से संरक्षण करना चाहिए ।
४ – जिस प्रकार शहर का कोट मजबूत होने पर लोग चिन्ताग्रस्त नहीं होते, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य व्रत का कोट अगर अडिग हो तो शील पर किसी प्रकार का आघात नहीं आ सकता ।
५—अब मैं बतलाता हूँ कि शील-संरक्षण के लिए कोट का निर्माण किस तरह करना चाहिए और किस प्रकार उसका संरक्षण करना चाहिए। हे ब्रह्मचारी ! इसके ब्योरेवार वर्णन को एकाग्र मन से सुनो ।
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