________________
बाठमी बांड़: ढाल ६: गा०२०-२८
२०-ऐसी अवस्था में उससे अन्न सर्वथा - छूट जाता है। वह धर्म-ध्यान नहीं कर पाता, आर्तनाद करने लगता है।
___२१-तब, श्वास, और खांसी के रोग. हो, जाते हैं, जलोदर बढ़ जाता है। शरीर की सुधबुध नहीं रहती। ___२२-तव, अपच का रोग बढ़ जाता है। आहार जरा भी नहीं पचता। कोई भी औषधि कारगर नहीं होती।
२३-शरीर में दाह उत्पन्न होता है। निरन्तर जलन रहती है। पेट में अत्यन्त शूल उठने लगता
२०-पर्छ "जावक छुटै अन-रे:
चुकं धर्म ध्यान थी।
वले बोलें घणों दयामणो ए॥ २१-वले हुवें सास ने खास रे 2. जलोदर
वधे । .. सून . बूंन देही . पडे. ए॥ २२-वधे: अपचों, रोग . रे, :
आहार :: : पर्चे नहीं।
ओषध को लागे नहीं ए॥ २३-वले उपनें दाह सरीर-रे.:
बलण..: लागी रहें। - पेट मूल चालें घणी ए॥ :२४-वेदन : हुवें आंख ने: कांनः रे,
खाज हुवें, घणीं । ____वले रोग पीतंजर उपजें ए॥ २५–इत्यादिक बहु : रोग---रे:
- उपजे आहार थी। .. कहि २ ने कितरो कहूं ए॥ २६.-ए हुवें आहार , थी रोग रे,
जब नाम ले अवर नों!
कूड कपट वधे घणों ए। २७-जे चांपे करें आहार : रे,
निधी: पेट रो।
त्यांने साच बोलणो दोहिलो ए॥ २८- कोइ: साध-: कहें एमरे
ओ आहार, इधको करें। तो घणों कुडे तिण उपरें: ए॥
२४-आँख और कान में वेदना होने लगती है। खुजली हो जाती है। पित्त-ज्वर का रोग उत्पन्न होता है।
२५-अधिक आहार से ऐसे. अनेक रोग हो । जाते हैं। उनका वर्णन कहाँ तक किया जाय ?
२६-ये समस्त रोग अधिक आहार के सेवन से होते हैं। नाम भले ही कोई दूसरे का ले। इससे कूट-कपट की. अत्यन्त वृद्धि होती है।
___२६-जो पेंटू बन, ढूंस-ठूस कर आहार ग्रहण करता है, उसके लिए सच बोलना दुष्कर हो जाता है।
२८-कोई साधु यदि कहता है कि अमुक साधु अधिक आहार करता है तो उसकी बात सुनकर वह उस पर अत्यन्त चिढ़ने लगता है।
Scanned by CamScanner