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छठी बाड़ : ढाल ७ : टिप्पणियां
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-ब्रह्मचारी गृहस्थ-जीवन में स्त्री के साथ भोगे हुए भोग, हास्य, क्रीड़ा मैथुन, दर्प, सहसा वित्रासन आदि के प्रसंगों का पलरयाई पुन कोलियाई सरमाणे संतिभेदा सन्तिविभंगा संति-केवलोपण्णत्ताओ धम्माओ भसज्जा। पूर्वरत, पूर्व-क्रीड़ित भौगों का स्मरण करने से शान्ति का मन होता है. उसका विभङ्ग होता है और निग्रन्थ कवला प्रर
-आचाराङ्ग २ : ४३
भङ्ग होता है. उसका विभङ्ग होता है और निर्ग्रन्थ केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। [२] ढाल गा० १-६ :. . ___ इन गाथाओं का आधार निम्न आगम स्थल लगता है:
चउत्थ पुव्वरय पुव्व कोलिय पुळ्व संगंथ गंथ संथुया जे ये आवाह विवाह चोल्लगेस य तिहिस जण्णेस उस्सवेसु य सिंगारागार चारवसाह हावा भाव पललिय विक्खेव विलास सालिणीहि अणुकूल पेम्मिगाहिं सद्धिं अणुभया सयण संपओगा उउसह वर कुसुम सुरभि चन्दन सुगन्धिवर वास धूव सुह
रमाणज्जा उज्जगय पउर णडणट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिग वेलंवग कहा पव्वग लासग आइक्खगलंखमंख तूणइल्लतुम्ब वीणिय तालायरपकरणाणि य वहूणि महरसरगीय सुस्सराई अण्णाणि य एवमाइयाणि तवसंजमबंभचेरघाओवघाइयाई अणुचरमाणेणं बंभचेर ण ताइ समर्णण लब्मा दटुंण कहेउं ण वि सुमरिउं।
-प्रश्र०२:४ चौथी भावना पहले (गृहस्थ अवस्था में) भोगे हुए काम-भोगों का, पहले की हुई क्रीड़ाओं का, पहले के श्वसुर आदि सम्बन्धियों का, अन्यान्य सम्बन्धियों का तथा परिचित जनों का स्मरण नहीं करना चाहिए। आवाह ( वधु का आगमन) विवाह और वालक के चूडाकर्म के अवसर पर, विशिष्ट तिथियों में, यज्ञ (नाग पूजा आदि ) तथा उत्सव (इन्द्रोत्सव आदि) के प्रसंग पर शृगार से सजी हुई सुन्दर वेष वाली स्त्रियों के साथ, हाव भाव, ललित विक्षेप, विलास से सुशोभित, अनुकूल प्रेमिकाओं के साथ पहले जो शयन या सान्निध्य किया हो उसका स्मरण नहीं करना चाहिए।
ऋतु के अनुकूल सुन्दर पुष्प, सुरभित चन्दन, सुगन्धित द्रव्य, सुगन्धित धूप, सुखद स्पर्शवाले वस्त्र, आभूषण आदि से सुशोभित स्त्रियोंके साथ भोगे हुए भोगों का स्मरण नहीं करना चाहिए।
रमणीय वाद्य, गीत, नट, नर्तक (नाटक ). जल्ल ( रस्सी पर खेल करनेवाला नट), मल्ल. मुष्टिक (मुट्ठी से कुस्ती करनेवाला मल्ल), विदूषक, कथाकार, तैराक, रास करनेवाले-भाण्ड, शुभाशुभ वताने वाले आख्यायक, लंख (वड़े वाँस पर खेल करने वाले), मंख (चित्र दिखाकर भीख मांगनेवाले ). तुम्बा बजाने वाले, ताल देने वाले, प्रेक्षक इन सव की क्रियाओं को, माँति-भाँति के मधुर स्वर से गाने वालों के गीतों को, तथा इनके अतिरिक्त तप-संयम-ब्रह्मचर्य का एक देश या सर्व देश से घात करनेवाले व्यापारों को, ब्रह्मचर्य की आराधना करनेवाला पुरुष त्याग दे। वह न कमा इनका कथन करे, न स्मरण करे। [३] ढाल गा० ७-८-६ :
इन गाथाओं में छठी वाड़ का पूर्व बाड़ों के साथ क्या सम्बन्ध है यह बताया गया है। पाँचवी वाड़ में कामोत्तेजक शब्द सुनने की मनाही है. चौथी बाड़ में रूप निरीक्षण की मनाही है, तीसरी वाड़ में स्पर्श की मनाही है, दूसरी वाड़ में स्त्री-कथा को मनाही है। इस छठी वाड़ में स्त्री के सुने हुए कामोद्दीपक शब्द को स्मरण करने, जो रूप देखा हो उसका स्मरण करने, जो स्पर्श आदि भोग भोगे हों उनका स्मरण करने, जो स्त्रो-कथायें सुनी हो उनका स्मरण करने की मनाही है। इन में से एक का भी स्मरण करना छठी बाड़ का भग करना है। जो पूर्व में सेवन की गई सारी वातों का स्मरण करता है, उसका ब्रह्मचर्य व्रत विनष्ट हो जाता है। [४] ढाल गा० १०:
जिनरिख और रयणादेवी की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा २५ [५] ढाल गा० ११
विष मिश्रित छाछ पीनेवाले की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा २६ [६] ढाल गा० १२:
सर्प दंशित व्यक्ति की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा २७
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