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१ - भीत
परेच ताटी आंतरें, जिहां रहिता दुर्वे नर नार । तिहां ब्रह्मचारी ने रहिवों ए जिण कही पांचमीं बाड़ ' ॥
नहीं,
२ - संजोगी
ब्रह्मचारी
तेह तणा
हुवें
वरत
३ - जेवर
पार्से
दिन
पांचवीं बाड़
ब्रह्मचारी ने रहिवों नहीं, सब्द पड़े तिहां कान
ढाल : ६
दुहा
सब्द
रहें,
रात ।
सुण्यां,
घात ॥
खलकती,
ते सब्द पड़ें तिहां कांन ।
जब चल जाएं लागे विर्षे
ब्रह्म वरत थी, सूंध्यांन ॥
आर्यन भयो
१ - ब्रह्मचारी को उस स्थान पर नहीं रहना चाहिए जहाँ दीवार, पर्दा या टाटी की ओट में स्त्री-पुरुष रहते हों। जिन भगवान् ने पांचवी बाड़ कही है।
१- बाड़ सुणों हिवें पांचमीं रे लाल, सील तणी रुखवाल | ब्रह्मचारी रे। ज्यँ वरत कुसलें रहें तांहरों रे लाल, व नावे अछतो आल । ब्रह्मचारी रे । बाड़ सुणों हिवें पांचमीं रे लाल ॥
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२ - यदि ब्रह्मचारी रात-दिन संयोगी के पास रहता है तो उसके शब्दों को सुनने से उसके ब्रह्मचर्य - त की घात होती है ।
३- जब जेवर और नुपूर की आवाज करती हुई स्त्री चलती है तो उसके शब्द ब्रह्मचारी के कान में पड़ते हैं, जिससे वह ब्रह्मचर्य व्रत से विचलित हो जाता है और उसका ध्यान विषय में लग जाता है।
ढाल
[ आनन्द समकित उच्चरे रे लाल
१ - हे ब्रह्मचारी ! अब तुम पांचवीं बाड़ सुनो, जो शील- रक्षा की हेतु है, जिससे कि तुम्हारा व्रत कुशल रह सके और तुम पर झूठा कलंक न आये ।
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