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शील की नव बाड़
[१५] गा० १६ का पूर्वाई :
नारी के रूप की कथा सुनकर भ्रष्ट होनेवाले व्यक्तियों के कुछ उदाहरण तीसरो दाल के विवेचन में आ चुके हैं। [१६] ढाल गा० २१ का पूर्वाई : . इस विषय में 'प्रश्न व्याकरण' सूत्र में कहा है : ..
__ "तइयं नारीणं हसिय भणियं चेट्ठियविपेक्खेयगइ विलास कीलिय बिब्वोइयणट्टगोय -वाइय सरीर संठाण वण्णकर चरणणयण लावण्ण रूव जोव्वण पयोहराधर वत्थालंकारभूसणाणि य गुज्झोवगासियाई अण्णाणि य एवमाइयाई तवसजम बंभचेरघाओवघाइयाइ अणुचरमाणेणं बंभचेर न चक्खुसा ण मणसा ण वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माई।" -प्रभ०२-४ तीसरी भावना
अर्थात्-स्त्री का हास्य, विकारयुक्त वचन, चेष्टा, नजर, गति, विलास, क्रीड़ा, विब्वोक, नृत्य, गीत, बाजा बजाना, शरीर की बनावट, रंग-रूप, हाथ, पैर, नेत्र, लावण्य, आकार, यौवन, स्तन, अधर, वस्त्र, अलंकार, सजावट, गुह्य अंग तथा इसी प्रकार की अन्य पाप जनक वस्तुएँ, जो तप-संयम तथा ब्रह्मचर्य का पूर्ण या आंशिक रूप से घात करतो हों, ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान करने वाले को नयन, मन, और वचन से त्याग देनी चाहिये। “एवं इत्थीरूवविरइसमिइ जोगेण माविओ भवइ अंतरप्पा आरयमण विरय गाम धम्मे जिइन्दिए बमचेर गुत्ते।" मापन
-प्रम०२-४ तीसरी भावना अर्थात्-इस प्रकार स्त्री रूपविरति-समिति के योग से भावित अंतरात्मा ब्रह्मचर्य में आसक्त, इन्द्रियों की लोलुपता से रहित, जितेन्द्रिय तथा ब्रह्मचर्य गुप्ति से युक्त होता है।
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