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बोथी बाड़: ढाल ५ : टिप्पणियां
टिप्पणियाँ
[१] दोहा १ पूर्वार्द्ध:
चौथो वाड़ का स्वरूप आगम के निम्नलिखित वाक्यों पर आधारित है :
तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाई आलोएज्जा निज्झाएज्जा' |
उत्त: १६:४ -निग्रंथ स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों का अवलोकन न करे, निरीक्षण न करे ।
न रूवलावण्णविलास हास, न जंपियं इंगियपेहिय वा। इत्थीण चितंसि निवेसइत्ता, दटुं ववस्से समणे तवस्सी ॥ अदंसणं चैव अपत्थणं च, अचिंतणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियझाणजुर्ग, हियं सया वंभवए रयाणं ॥
दम उत्त ३२:१४-१५ -श्रमण तपस्वी स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास, हास्य, मंजल भाषण. अंग-विन्यास. कटाक्ष को चित्त में स्थान दे, देखने का अध्यवसाय न करे।
-ब्रह्मचारी को स्त्री के रूप आदि को नहीं देखना चाहिए। उसकी इच्छा नहीं करनी चाहिए, उसका चिंतन नहीं करना चाहिए. उसका कोत्तन नहीं करना चाहिए। ब्रह्मचर्य में रत पुरुष के लिए यह नियम सदा हितकारी और आर्य ध्यान- उत्तम समाधि प्राप्त करने में हितकर है। [२ ] दोहा १ उत्तराई . 'प्रश्नव्याकरण सूत्र' में कहा है :
उत्तमतवणियमणाणदंसणचरित्तसम्मत्त विणयमूलं." मोक्खमगर्ग विसुद्ध सिद्धिगइणिलयं ..." अपुणब्भवं ... ... अक्खयकर ...... णिरुवलेवं .......... सण्णदोच्छाइयदुग्गइपहं सुगइ. पहदेसगं ।
-प्रश्न० २४१ -ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और विनय का मूल है। यह मोक्ष का मार्ग है। विशुद्ध मोक्षगति का स्थान है। पुनर्जन्म का निवारण करनेवाला है। अक्षय सुख का दाता है। निरुपलेप है। यह दुर्गति के मार्ग को रोकता है. सुगति के मार्ग का प्रदर्शक है।
ब्रह्मचर्य के इन गुणों के कारण जो इस.व्रत का शुद्धता पूर्वक पालन करता है निश्चय ही वह अपने जन्म को सफल करता है क्योंकि इसके द्वारा वह अपने लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
[३] दोहा २: इस दोहे का आधार आगम का निम्नलिखित श्लोक है :
चित्तभित्तिं न निज्झाए, नारिं वा सुअलंकियं । भक्खरं पिव दवणं दिट्ठि पडिसमाहरे ॥ .
-द०८:५५ -आत्मगतेपी परुष सअलंकत नारी की और यहाँ तक कि दीवार पर अहित चित्र तक की ओर गृद्ध दृष्टि से न ताके। यदि दृष्टि पड़ भी जाय तो जैसे उसे सूर्य की किरणों के सामने से हटाते हैं. उसी तरह हटा ले।
१-प्रायः ऐसा ही पाठ आचाराङ्ग २ : १५ (चौथे व्रत की दूसरी भावना ) में मिलता है। ...,
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