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भूमिका
हणियों में उन मागम-स्थलों को दे दिया गया है, जिनका उपयोग स्वामीजी ने कृति में किया है। परिशिष्ट-क में कृति में संकेतित कथाएं विस्तार से दे दी गई है।
शिष्ट-ख में ब्रह्मचर्य-विषयक प्रागमिक आधारों को एक जगह संगृहीत कर दिया गया है। परिशिष्ट-ग में श्री जिनहर्षजी रचित 'शील को नव बाड़ दी गयी है। परिशिष्ट-घ में पुस्तक के सम्पादन में प्रयुक्त पुस्तकों की विवरण-तालिका दी गयी है। भमिका में भिन्न-भिन्न ३६ मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है।
याधुनिक विचारकों में संत टॉल्स्टॉय और महात्मा गांधी का स्थान अग्रगण्य है। उनके विचारों को विस्तार से देते हुए प्रागमिक विचारों से उनकी यथाशक्य तुलना की गई है। महात्मा गांधी के प्रयोग और नव बाड विषयक उनके विचारों को अतीव विस्तार से इसलिए दिया है कि जेनों का ध्यान उस ओर जा सके और वे उनपर गंभीरता-पर्वक चितन कर सकें। भमिका में जन पाठकों के समक्ष कुछ ऐसी बात पायेगी जिनकी पोर उनका ध्यान गया ही न हो अथवा थोड़ा गया हो और जो नया चिंतन तथा खोज चाहती हैं।
इस अवसर पर मैं उन सब विद्वानों, लेखकों और प्रकाशकों के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ, जिनकी कृतियों का उपयोग मैंने इस पुस्तक के सम्पादन में किया है।
श्री अगरचन्दजी नाहटा का मैं विशेष रूप से ऋणी हैं, जिन्होंने मुझ थी जिनहर्षजी रचित "शील की नव बाड़" की हस्तलिखित प्रति अवलोकनार्थ देने की कृपा की।
स्वामीजी की कृति "शील की नव बाड़" का यह संस्करण पाठकों को कुछ भी लाभप्रद हो सका, तो मैं अपने को कृतार्थ समझंगा।
श्रीचन्द रामपुरिया
१५, नूरमल लोहिया लेन कलकत्ता २८ दिसम्बर, १९६१ ।।
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