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भूमिका
के लिए ही होती है । हालत बदली और बाढ़ भी गई। मगर एकादश व्रत का पालन तो ब्रह्मचर्य का जरूरी हिस्सा है। उसके बिना ब्रह्मचर्य - पालन नहीं हो सकता ।
श्राखिर में ब्रह्मचर्य मन की स्थिति है। बाहरी श्राचार या व्यवहार उसकी पहचान, उसकी निशानी है। जिस पुरुष के मन में जरा भी विषय-वासना नहीं रही, वह कभी विकार के वध नहीं होगा वह किसी धौरत की चाहे जिस हालत में देले, चाहे जिस रूप-रंग देतो भी उसके मन में विकार पैदा नहीं होगा यही रमी के बारे में भी समझना चाहिए। मगर जिसके मन में विकार उठा ही करते हैं, उसे तो सगी बहन या बेटी को भी नहीं देखना चाहिए। मैंने अपने कुछ मित्रों को यह नियम पालन करने की सलाह दी थी ।......इसका पालन किया, उन्हें फायदा हुआ है। अपने बारे में मेरा उजवा है कि जिन चीजों को देखकर दक्षिणी अफ्रीका में मेरे मन में कभी विकार पैदा नहीं हुआ था, उन्हीं से दक्षिणी अफ्रीका से वापस आने पर मेरे मन में विकार पैदा हुया । श्रौर, उसे शांत करने में मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी।
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ब्रह्मचर्य की जो मर्यादा हम लोगों में मानी जाती है, उसके मुताबिक ब्रह्मचारी को स्त्रियों, पशुओं और नपुंसकों के बीच नहीं रहना चाहिए। ब्रह्मचारी अकेली स्त्री या स्त्रियों की टोली को उपदेश न करे । स्त्रियों के साथ, एक श्रासन पर न बँडे । स्त्रियों के शरीर का कोई हिस्सा न देखे । दूध, दही, घी वगैरह चिकनी चीजें न खाये। स्नान-लेपन न करे। यह सब मैंने दक्षिणी अफ्रीका में पढ़ा था। वहाँ जननेन्द्रिय का संयम करनेवाले पश्चिम के स्त्री-पुरुषों के बीच में मैं रहता था। मैं उन्हें इन सब मर्यादाओं को तोड़ते देखता था। खुद भी उनका पालन नहीं करता था । यहाँ श्राकर भी न कर सका ।
मुझे लगता है कि जो ब्रह्मचारी बनने की सी कोशिश कर रहा है, उसे भी ऊपर बताई हुई मर्यादाओं की जरूरत नहीं है। ब्रह्मचर्य जबरदस्ती से यानी मन से विरुद्ध जा कर पालने की चीज नहीं। वह जवरदस्ती से नहीं पाला जा सकता। यहाँ तो मन को वश में करने की बात है। जो जरूरत पड़ने पर भी स्त्री को छूने से भागता है, वह ब्रह्मचारी बनने की कोशिश नहीं करता।
इस लेख का मतलब यह नहीं कि लोग मनमानी करें। इसमें तो सच्चा संयम पालने की बात बताई गई है। दंभ या ढोंग के लिए यहाँ कोई जगह हो ही नहीं सकती।
जो छुपे तौर से विषय सेवन के लिए इस लेख का इस्तेमाल करेगा, वह दंमी और पापी गिना जायगा ।
ब्रह्मचारी को नकली बाड़ों से भागना चाहिए। उसे अपने लिए मर्यादा बना लेनी चाहिए। जब उसकी जरूरत न रहे, तब तो उसे तोड़ना चाहिए । ( ५-६ - ४७ )
२१ - ब्रह्मचर्य क्या है, यह बताते हुए मैंने लिखा था कि ब्रह्म यानी ईश्वर तक पहुँचने का जो श्राचार होना चाहिए, वह ब्रह्मचर्य है ।... ईश्वर मनुष्य नहीं है । इसलिए वह किसी मनुष्य में उतरता है या श्रवतार लेता है, ऐसा कहें तो यह निरा सत्य नहीं है। है कि ईश्वर एक शक्ति है, तत्त्व है, शुद्ध चैतन्य है, सब जगह मौजूद है। मगर हैरानी की बात यह है कि ऐसा होते हुए
सहारा या फायदा नहीं मिलता, या यों कहें कि सब उसका सहारा पा नहीं सकते ।
१ - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शरीरश्रम, अस्वाद, सर्वत्र भयवर्जन ।
सर्वधर्मी, समानत्व, स्वदेशी, स्पर्शभावना, हीं एकादश सेवावीं नम्रत्व व्रतनिश्चये ॥
२ - ब्रह्मचर्य ( दू० भा० ) पृ० ५४-५६
३ वही पृ० ५७-५८
सच बात तो यह भी सब को उसका
बिजली एक बड़ी शक्ति है। मगर सब उससे फायदा नहीं उठा सकते। उसे पैदा करने का अटल कानून है। उसके अनुसार काम किया जाय तभी बिजली पैदा की जा सकती है। बिजली जड़ है, बेजान चीन है, उसके इस्तेमाल का फायदा चेतन मनुष्य मेहनत करके जान सकता है। जिस पेतनामय बड़ी भारी शक्ति को हम ईश्वर कहते हैं, उसके प्रयोग का भी नियम तो है ही। ...... उस नियम का नाम है ब्रह्मचर्य । ब्रह्मचर्य को पालने का सीधा रास्ता रामनाम है। यह मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं... |
इस तरह विचार करते हुए मैं कह सकता हूं कि ब्रह्मचर्य की रक्षा के जो नियम माने जाते हैं, वे तो खेल ही हैं। सच्ची श्रोर श्रमर रक्षा तो रामनाम ही है । (१४-६-४७)
२२ - विलायत में अच्छी तरह शिक्षाप्राप्त एक हिन्दुस्तानी भाई ने अपनी एक उलझन गांधीजी के सामने इस प्रकार रखी एक तरफ से लगता है कि स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध को ज्यादा कुदरती बनाने से बुराई और पापाचार कम होगा। दूसरी तरफ से लगता है कि
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