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मरू-गूर्जर जैन कवि
धारानंदन धीर ए वीर जिण, जिण-सासणि अहिलसइ ए।
कामल उयरिइं हम ए, हंस जिम जिम जण मण अवलस इ ए॥२ अन्त- श्रीअभयसिंह सूरि पाटि ए पुवदिश, पुव्व दिसि दिनकर झला.
हल ए। मण तण वयण एकांति ए ध्यानिहि, ध्यानिहिं कलिमल कलि टलइ
एं ।। १०. सहीय सुलाहिस दीह ए जही यह, दीयह निजगुरू वांदीय ए। रिद्धि वृद्धि सू परिवारि ए नामिहिं, नमिहिं चिर थिरि नांदीय
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प्रति० अभय जैन ग्रन्थालय
(१०६) अज्ञात . (१२८ तपा गुरावली गा० ३४
आदि- पणमउ च उवीसवि चलण, रिद्धि वृद्धि सवि मंगलकरगा ।
तपागच्छि ति हुयण जयबंत, गायसु गुरु गरूया गुणवंत ।। १ चउवीसमु जिरणेसरू वीरू, पाप ताप दमवानल नीरू । .
जिण सासण के रूउ सिणगारू, पढम सीसु गोयम गणधारू ॥२ अन्त- श्री रतनागर गच्छि विदवांस, जे जे रत्नाधिक पड़या हंस ।
महासत महासती सविहु नाम, करजोड़ी नइ करउ प्रणाम् ॥३३ इणि परि सहुगुरु केरा नाम, लेइ नइ जे करइं प्रणामु । मनसा वाचा काय विशुद्धि, तीहं तणइ घरि अविचल सिद्धि ।। ३४
प्र० अभय जैन ग्रन्थालय
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