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राजशेखर उदयकरण
चौदहवीं सदी
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मेरु सिहरमि इंदेहि जह विहि कउ, पढम जिण न्हवणु भत्तीइ
बुह सम्मउ तयणुसारेण भो भवियणा संपयं, तह कुणहु जह लहहु सासय सिव
पयं ।।२२ प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(८४) राजशेखर (९४) श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम् गा०१०
आदि-कमठासुर माण गिरिद पवि भवियंग सरोज विबोह रविं।
सुरराय विणमिय णेग महं, विनुवामि जिणेसर पास महं ॥१ अन्त - सिरि प्रससेण नरेसर जाओ, इंदनील नीलुप्पल कारो। रायसिहरि संपूइय पामो, पासु पसीयउ मे जिणराप्रो ॥१०
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय वि० राजशेखर सूरि दे० जे० गू० क० भा० १ पृ० १२ भा० ३ पृ० ४१२
(८५) उदयकरण (९५) श्री जीराउला पार्श्वनाथ स्तोत्रम् गा०९
भादि -जीराउलि मंडण पासनाह, पय पउम सुसेवय नागनाह । मण वंछिय तरु गण फलण राह, महि मंडलि गुरु महिमा
सणाह ।।१
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