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अज्ञात
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चौदहवीं सदी
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(९०) साऊका पार्श्वनाथ स्तवनम् गा० १०
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आदि - सिरि सोहंत फणामणि मालं, श्रमि चंद सरिस सम भालं ।
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रवि ससिहर कुडल संकासं वंदे साऊ जिनहरि पासं ॥ १ सायर सरिहर निरमल काय, मोंड़िय मयण महाभड़ि वायं । पूरिय [मन] वछित [ सहु] आस, वेदे साऊ जिणहरि पासं ||२
अन्त - वंम्मा कुविख सरोवर हंस, अससेण नरवइ पयड़िय वंसं । केवल लच्छि विलास निवास, वंदे साऊ जिणहरि पास ॥ देखिय साऊय सेठि विहार, सुरपति भुवण सरिस जगि सारं । धंनु सु वरिस दिवसु सुमासं, वंदे साऊ जिणहरि पासं ॥ १०
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
(८१) अज्ञात
(९१) कोका पार्श्वनाथ स्तव० गा० ३० अपूर्ण
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भविक लोक तम्हि मन माहि ध्याउ,
आदि - प्रससेणि रायकुलि अवतरीउ, हेला मांहि जीणइ जग उधरीउ, उदयउ अभिनव चंदो ॥१ तावि माए विहि ऊयरिइं धरीउ, वाणारसी नयरी अवतरीउ, की मनि प्रारदो ॥२ अन्त - कोकउ पारिसनाथ बखाणंउ, साम्ह कई गुण पार न जाणु चितामणि अवतारो ||३०
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प्रतिलिपि - प्रभय जैन ग्रन्थालय