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श्रा० लखण
तेरहवीं सदी
[ १३
आदि-सिद्धत्थ महानर राय वंश, सर राय हंस मुणि रायहंस ।
तेलुक्कनाह जुगदीह वाह, जय चरम जिणेसर वीरनाह ॥१ तुह मज्जणु जे जिण कुणहि भव्य, ते पावइ संपइ नाह सब्व । उच्छिन्न रुद्द दारिद्द कंद, पणयामरचिंद जिणिद चंद ॥२ साधन्न पुन्न सकयस्थ वीर, सिरि तिसलदेवि जसु उयरि धीर । उपन्नु सयल तेल्लुक नाहुं, तहु गुण गण रयणह सलिल नाहु ।।३ सुर सिहरि मिलिय चउस ट्ठि इंद, जम्मक्खणि तक्खणि तुह
जिविंद । के ऊर मउड़ कड़ि सुत्तहार, चल कुडल मंडिय भत्ति सार ॥४ अन्त-जम्माभिसेउ कय तिजग सेउ, भवियण मिन्नासिय पाव लेउ ।
तुह करहि देव देविंद विंद, असुरिंद फणिंद स जोइसिंद ॥१३ जेम मेरुम्मि अमरेसरा मज्झणं, करहि तुह वीर गिरि धीर दुह
तज्जरणं । सद्द सुवियड्ड तह फुणहि जे संपयं, सुत्त रिहिणाउ ते लहहि परम
पयं ।।१४ इति श्री महावीर जन्माभिषेकः कृतः श्री जिनेश्वर सूरिभिः
१ (सं० १४३७ लि. प्रति से २ बीकानेर जिन हर्ष सूरि भंडार प्रति
(१७) जिनेश्वर सूरि शि० (१७) श्री आदिनाथ बोलिका गा०८ रचना स्थान-बाहड़मेर
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