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१० ]
पण
आदि -- पणमवि सरसइ देवी, सुय रयण विनूसिय नेमि सुरासो, जण निसुणहु सूसिय ॥१॥ अन्त - सिरि जिणवइ गुरु सीमिई, इहु मणहर भासु । नेमि कुमारह रइड, गणि सुमइणि रासु । ५७॥ सासण देवी अबाई, इउ रास दियतह
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विग्घू हरउ सिग्घु, संघह गुणवंतह |५८६ |
मरू- गूर्जर जैन कवि
वि० श्री सुमति गणि की दीक्षा सं १२६० में हुई थी । इनकी सबसे बड़ी रचना 'गणधरसार्धशतक वृहद् वृत्ति' सं० १२६५ की है जिसका परिमाण १२१०५ श्लोकों का है ।
[१४ वीं १५ वीं शती की लिखित २ प्रतियां, जैसलमेर भंडार] प्र० हिन्दी अनुशीलन वर्ष ७ अं० १
अन्त - (सं० १२७७)
(१३) शाह रयण ( ख० जिन पति सूरि भक्त श्रावक ) (१३) श्री जिनपति सूरि धवल गीत गा० २०
सं० १२७८ के लगभग
प्रादि- वीर जिरणेसर नमइ सुरेसर, तस पह पर्णामय पय कमले । युगवरं जिनपति सूरि गुण गाइसो, भत्तिभर हरसिहि मनि रमले |१|
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अन दिगंतरे बार सतहोतरे, मास असादि जिण अणसरी ए । मन्न सुर भाणहि सिय दसमी दिवसहि, पहुतउ सूरि अमरापुरी
ए ॥१६॥