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ह कवि
बारहवीं सदी
मन्त-धम् मुवएसं पयं पाराहेहिति जे महासत्ता । चारित्त चंदन धलिय तिजया जाहिति ते सिद्धि ॥११६॥
[जीवदया प्रकरण काव्य त्रयी में सानुवाद प्रकाशित
(११) श्री जिनपति सूरि शि० (ख) (११) शांतिनाथ रास (अपूर्ण प्राप्त)
(स० १२५८ के लगभग) प्रादि-पंचमु भरह नरिंदो, जिणवइ सोलसमो,
संति सुहुंकर कदो, पणमिय पय पड़िवनउ । चरिउ किंपि पभण उतसु नाहह, गुरु चूडामणि भुविय पावह । त नि मुणतह भवियह सत्रणिइं. भरियहं अमीय रसायण म घणि उौं । रवेडि नयरि जो सति उद्धरणि कराव्यु, विहि समृदय ससुभत्ति
जिणवइसूरि ठावियु ॥ अन्त-अप्राप्त
इस में खेडनगर के शांति जिनालय का उल्लेख है जो कि उद्धरण साह कारित और सं० १२५८ में जिनपति सूरि द्वारा प्रतिष्ठित हुप्रा था ।
(प्रति - अपूर्ण, जेसलमेर भण्डार)
(१२) सुमति गणि (ख० जिनपति सूरि शिष्य) (१२) श्री नेमिनाथ रास गा० ५८
(सं० १२७० के लगभग)
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