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सिगु
तेरहवीं सदी
[ ७
( 5 ) सिरिमा महत्तरा ( स्व ० जिनपति सूरि प्राज्ञानुवर्ती साध्वी )
(८) जिनपति सूरि वधामणा गीत गा० २०
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आदि - भासी नयरी वधावणउ, प्रायउ जिणपतिसूरि जिणचदसूरि सीसु प्राइया लो ।
सं० १२३२ के लगभग
वधावणउ वजावि सुगुरु जिनपतिसूरि प्राविया लो। आंकणी । मध्य- हाले महतो इम भणड, संघह मणोरह पूरि ।
बारहसे बत्तीसा ए, मासि जेठह सुद्धि तीजह । जि० । ८ । सिरिमा महत्तर इम भणइ डव पहु होसइ कांइ ॥
प्रन्त-घरि घरि हुनउ वधामणउ, सरगहि रंजियउ जिणचंद सूरि । प्रासिया नयरि वधावणउ ।। २० ।।
(६) प्रासिगु
[ अनूपसंस्कृत लायब्र ेरी ]
वि० यह रचना साहित्यक भाषा में न हो कर बोलचाल की सरल भाषा में है। प्रति भी १७ वीं शती से पूर्व की प्राप्त नहीं है अतः भाषा में कुछ परिवर्तन हुआ। संभव है ।
( पाठ भेद सह प्र० हिन्दी अनुशीलन वर्ष १२ अं० १ )
सिगु (शांति सूरि भक्त )
(९) चन्दनबाला रास गा० ३५ जालोर
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आदि - जिण अभिनवि सरसइ भणए, पुविहि भरह खेत्रि ज वीत ।
वीर जिरणदह पारणाए, निसुणउ चंदनबाल
चरितु । १ ।।