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मरू-गूर्जर जैन कवि
अज्जु मित्तु सुह महत्तु, अज्जु गह रासि सुहंकरु ॥ सकयत्थु अज्जु लोयण जुयलु, हिप्रद अज्जु वढि यइ सुहु । गउ पाउ अज्ज दूरंतरिण, दिट्ठइ गुरु जिणचंद पहु ॥८॥
कृतम् श्रावक लखणेन, पत्र २ अभय जैन ग्रन्थालय वि० दूसरे एवं तीसरे पद्य में 'लखणु भणइ' पाठ है। (मणिधारी) जिनचन्द्र सूरि का समय सं० १२११ स १२२३ तक का है।
(७) वज्रसेन सूरि (देव सूरि शिष्य)
(७) श्री भरहेसर बाहुबलि घोर गा० ४५
आदि-पहिल रिसह जिणिदु नमेवि, भवियहु निसुणह रोलु धरेवि ।
बाहुबलि केरउ विजउ ॥१॥ सयलह पुत्तह राणिव देवि, भरहेसरु निय पाट ठवेवि ।
रिसहेसरि संजमि थियउ ॥२॥ मध्य-देवसूरि पणमेवि सयलु, तिय लोय वदीतउ
वयरसेण सूरि भणइ एह, रख रंगु जु वीतं ॥२५।। अन्त-अवरु म करिसउ मारणु ए, वयरसेणसूरि वज्जर ए।
भावण तिण भावेउ, जिव भावी भरहेसरिहि, तउ केवल पावेहु ए, राजु कारंता तेण जिव ।।४५।। वि० वादि देवसूरि शि० वज्रसेन सूरि का समय सं० १२३५ के लगभग
सं० १४३० लि. प्रति में । प्र० शोध पत्रिका ३/३
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