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मरू- गूर्जर जैन कवि
सालिभद्र चरित्रं । शुभं भवतु ॥ श्री ॥
प्रति - पत्र- - ४ ( श्रन्त पृष्ठ खाली ) पंक्ति- १४ | अक्षर - ५२
१७० देपाल (२००) काया बेड़ी सझाय गा० ५
प्रति० प्रभय०
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आदि. -काया बेड़ी काट सत्त वेध, ऊठि कोड़ि बंध बाधी न्हान्हो परहुण घणा नीगम्यां प्रति दुर्लभ तु लाधी ॥। १ संसार समुद्र अपारो, तीहं मारि जीव वणजारउ, दुन्नि क्रियाणा ववहरइ ।
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अन्त - विवेकु खंभु ज्ञानि पंजारि, निरुखिला दीठुला सेत्रुज स्वांमी देपाल भणइ जिण मंदिरु पामी, वधामणी दिउ धामी ।।५ प्रति० अभय० वि० दे० जे० गु० क० भाग १ पृ० ३७ भाग ३ पृ० ४४६
(१७१) जयानंद
(२०१) ढोला मारू की वार्ता दोहाबद्ध : दूहा ४४२, सं० १५३०, वैसाख वदी गुरुवार
श्रादि - अथ ढोला मारू से वार्ता दोहाबद्ध लिख्यते ।