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अज्ञात
पंद्रहवीं सदी
[ ८७
भव भवणि रमणि मिल्हेवि कर, नाण सदसण मनि धरिउ । जिनभद्रसूरि गुरु जाणि करि. चरण रमणि लीला वरिउ ।
प्रति० अभय
(१३८) जिन भद्रसूरि गीत गा० ९ पादि-पहिल पणमीय देव, देव तणो जु देव
गाइसु गणहरु ए, जिनभद्र सूरि गुरु ए ॥१ धीणिय साह मल्हार, खेतू कुखि अवतार ।
गुणवइ सहगरू ए महिमा सागरू ए ॥२ अन्त- श्री जिनभद्र सूरि राइ, दीठउ पातक जाइ ।
सुमति सुजाण गुरु ए, नंदउ तां चिरू ए ।।
प्रति० अभय.
(११८) धनराज (१३९) मंगल कलश विवाहलु पद्य १७० संवत् १४८०
श्रादि -परमगुरु आदि जिण नमवि पभरणेस. मंगल कलश वीवाहल ए।
पुहवि मनोहरो मालव देश नामि, परिणामि रलियामणउ ए । उज्जेणी वर नयर सविसाल, पूरिय धण कण रयण खाणि ।
सिंधु अरिगंजणी दिल्य ! तण, भूपाल वयरसिंघ वरं नरिंदो ॥१ अन्त - इसा करमनउ सुणउ विचार, मंगल कलश विरतउ संसारि ।
देवलोक पंचमइ जि जाइ, भवि त्रीजइ वलि सिद्धि लहेइ।
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