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बोधोपलब्धि
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जो सबका आधार, सब वस्तुओंका प्रकाशक, सर्वरूप, सर्वव्यापी, सबसे रहित, नित्य, शुद्ध, निश्चल और विकल्परहित अद्वैत ब्रह्म है, वही मैं हूँ। यत्प्रत्यस्ताशेषमायाविशेष
प्रत्यग्रूपं प्रत्ययागम्यमानम्। सत्यज्ञानानन्तमानन्दरूपं
ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहमस्मि ॥५१५॥ जो समस्त मायिक भेदोंसे रहित, अन्तरात्मारूप और साक्षात् प्रतीतिका अविषय तथा अनन्त सच्चिदानन्दस्वरूप अद्वैत ब्रह्म है, वही मैं हूँ। निष्क्रियोऽस्म्यविकारोऽस्मि निष्कलोऽस्मि निराकृतिः। निर्विकल्पोऽस्मि नित्योऽस्मि निरालम्बोऽस्मि निर्द्वयः॥५१६॥
मैं क्रियारहित, विकाररहित, कलारहित और निराकार हूँ तथा निर्विकल्प, नित्य, निरालम्ब और अद्वितीय हूँ। सर्वात्मकोऽहं सर्वोऽहं सर्वातीतोऽहमद्वयः। केवलाखण्डबोधोऽहमानन्दोऽहं निरन्तरः॥५१७॥
मैं सबका आत्मा, सर्वरूप, सबसे परे और अद्वितीय हूँ; तथा केवल अखण्डज्ञानस्वरूप और निरन्तर आनन्दरूप हूँ। स्वाराज्यसाम्राज्यविभूतिरेषा
भवत्कृपाश्रीमहिमप्रसादात् । प्राप्ता मया श्रीगुरवे महात्मने
_ नमो नमस्तेऽस्तु पुनर्नमोऽस्तु॥५१८॥ हे गुरो! आपकी कृपा और महिमाके प्रसादसे मुझे यह स्वाराज्यसाम्राज्यकी विभूति प्राप्त हुई है। आप महात्माको मेरा बारम्बार नमस्कार हो। महास्वप्ने मायाकृतजनिजरामृत्युगहने भ्रमन्तं क्लिश्यन्तं बहुलतरतापैरनुदिनम्। अहङ्कारव्याघ्रव्यथितमिममत्यन्तकृपया प्रबोध्य प्रस्वापात्परमवितवान्मामसि गुरो॥५१९॥