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तैत्तिरीयोपनिषद्
[ वल्ली १
( इन्द्रियदमन ) तथा स्वाध्याय और प्रवचन [ इन्हें सदा करता रहे ] 1 शम ( मनोनिग्रह ) तथा स्वाध्याय और प्रवचन [ये सर्वदा कर्तव्य हैं ] | अग्नि ( अग्न्याधान ) तथा स्वाध्याय और प्रवचन [ इनका अनुष्टान करे ] | अग्निहोत्र तथा स्वाध्याय और प्रवचन [ ये नित्य कर्तव्य हैं ] | अतिथि ( अतिथिसत्कार ) तथा खाध्याय और प्रवचन [ इनका नियम- 1 से अनुष्टान करे ] | मानुपकर्म ( विवाहादि लौकिकव्यवहार ) तथा स्वाध्याय और प्रवचन [ इन्हें करता रहे ] | प्रजा ( प्रजा उत्पन्न करना ) तथा स्वाध्याय और प्रवचन [-ये सदा ही कर्तव्य हैं ] । प्रजन (ऋतुकालमें भार्यागमन) तथा [ इसके साथ ] स्वाध्याय और प्रवचन [ करता रहे ] | प्रजाति ( पौत्रोत्पत्ति ) तथा स्वाध्याय और प्रवचन [ इनका नियतरूपसे अनुष्ठान करे ] । सत्य ही [ अनुष्ठान करने योग्य है ] ऐसा रथीतरका पुत्र सत्यवचा मानता है । तप ही [ नित्य अनुष्ठान करने योग्य है ] ऐसा नित्य तपोनिष्ट पौरुशिष्टिका मत है । खाध्याय और प्रवचन ही [ कर्त्तव्य हैं ] ऐसा मुद्गलके पुत्र नाकका मत है | अतः वे ( स्वाध्याय और प्रवचन ) ही तप हैं, वे ही तप हैं ॥ १ ॥
ऋतमिति व्याख्यातम् । स्खाध्यायोऽध्ययनम् । प्रबचनमध्यापनं ब्रह्मयज्ञो वा । एतान्यतादीन्यनुष्ठेयानीति वाक्यशेषः । सत्यं च सत्यवचनं यथाव्याख्यातार्थं वा । तपः कृच्छ्रादि । दमो बाह्यकरणोपशमः । शमोऽन्तःकरणोपशमः । अग्नय आधा
'ऋत' - इसकी व्याख्या पहले [ ऋतं वदिष्यामि इस वाक्यमें ] की जा चुकी है। 'स्वाध्याय' अध्ययनको कहते हैं, तथा 'प्रवचन' अध्यापन या ब्रह्मयज्ञका नाम है । ये ऋत आदि अनुष्ठान किये जाने योग्य - हैं - यह वाक्यशेष है । सत्य -सत्यवचन अथवा जैसा पहले [ सत्यं वदिष्यामि -- इस वाक्यमें ] व्याख्या की गयी है, वह; तप- कृच्छ्रादिः दमवाह्य इन्द्रियोंका निग्रह; शम-चित्तकी शान्तिः [ ये सब करने योग्य