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________________ तैत्तिरीयोपनिषद् [ वल्ली १ 'ॐ' यह शब्द ब्रह्म है, क्योंकि 'ॐ' यह सर्वरूप है; 'ॐ' यह अनुकृति ( अनुकरण —— सम्मतिसूचक संकेत ) है - ऐसा प्रसिद्ध है । [ याज्ञिकलोग ] "ओ श्रावय" ऐसा कहकर श्रवण कराते हैं। 'ॐ' ऐसा कहकर सामगान करते हैं । 'ॐ शोम्' ऐसा कहकर शस्त्रों (गीतिरहित ऋचाओं) का पाठ करते हैं । अध्वर्यु प्रतिगर ( प्रत्येक कर्म ) के प्रति ॐ ऐसा उच्चारण करता है। 'ॐ' ऐसा कहकर ब्रह्मा अनुज्ञा देता है; 'ॐ' ऐसा कहकर वह अग्निहोत्रके लिये आज्ञा देता है । ' वेदाध्ययन करनेवाला ब्राह्मण 'ॐ' ऐसा उच्चारण करता हुआ कहता है - 'मैं ब्रह्म ( वेद अथवा परब्रह्म ) को प्राप्त करूँ' । इससे वह ब्रह्मको ही प्राप्त कर लेता है ॥ १ ॥ ओमिति । इतिशब्दः स्वरूपओङ्कारस्य परिच्छेदार्थः, ओसार्वात्म्यम् मित्येतच्छब्दरूपं ब्रह्मेति मनसा धारयेदुपासीत । यत ओमिवीदं सर्वं हि शब्दरूप - " मोङ्कारेण व्याप्तम् । “ तद्यथा शकुना" ( छा० उ०२ | २३ | ३ ) इति श्रुत्यन्तरात् । अभिधानतन्त्रं ह्यभिधेयमित्यत इदं ४६ सर्वमोङ्कार इत्युच्यते । ओङ्कारस्तुत्यर्थमुत्तरो ग्रन्थः । 'ओमिति' इसमें 'इति' शब्द ओंकारके स्वरूपका परिच्छेद ( निर्देश) करने के लिये है । अर्थात् I 'ॐ' यह शब्दरूप ब्रह्म है - ऐसा | इसका मनसे ध्यान - उपासना करे; क्योंकि 'ॐ' यही सब कुछ है, कारण, समस्त ओंकारसे व्याप्त है, जैसा कि 'जिस प्रकार शंकुसे पत्ते व्याप्त रहते हैं' इत्यादि एक दूसरी श्रुतिसे सिद्ध ही अधीन होता है, इसलिये यह होता है । सम्पूर्ण वाच्य वाचकके सब ओंकार ही कहा जाता है । शब्दरूप प्रपञ्च उपास्यत्वात्तस्य 1 आगेका ग्रन्थ ओंकारकी स्तुतिके लिये है, क्योंकि वह उपासनीय है | 'ॐ' यह अनुकृति यानी अनुकरण है । इसीसे किसीके ओङ्कारमहिमा ओमित्येतदनुकृति - रनुकरणम् । करोमि यास्यामि द्वारा 'मैं करता हूँ, मैं जाता हूँ'
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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