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________________ नयम अनुकाक अन्नसञ्चयरूप व्रत तथा पृथिवी और आकाशरूप अन-ब्रह्मके ___ उपासकको प्राप्त होनेवाले फलका वर्णन अन्न बहु कुर्वीत । तद्वतम् । पृथिवी वा अन्नम् । आकाशोऽन्नादः । पृथिव्यामाकाशः प्रतिष्ठितः । आकाशे पृथिवी प्रतिष्ठिता । तदेतदन्नमन्न प्रतिष्ठितम् । स य एतदन्नमन्न प्रतिष्ठितं वेद प्रतितिष्ठति । अन्नवानन्नादो भवति । महान्भवति प्रजया पशुभिब्रह्मवर्चसेन । महान्कीर्त्या ॥१॥ अन्नको बढ़ावे-यह व्रत है। पृथिवी ही अन्न है। आकाश अन्नाद है । पृथिवीमें आकाश स्थित है और आकाशमें पृथिवी स्थित है। इस प्रकार ये दोनों अन्न ही अन्नमें प्रतिष्ठित हैं । जो इस प्रकार अन्नको अन्नमें स्थित जानता है वह प्रतिष्ठित होता है, अन्नवान् और अन्नाद होता है, प्रजा, पशु और ब्रह्मतेजके कारण महान् होता है तथा कीर्तिके कारण भी महान होता है ॥ १॥ अप्सु ज्योतिरित्यज्योति- पूर्वोक्त 'अप्सु ज्योतिः' आदि | मन्त्रके अनुसार जल और ज्योतिकी पोरन्नान्नादगुणत्वेनोपासकस्या- | अन्न और अन्नाद गुणसे उपासना करनेवालेके लिये 'अन्नको बढ़ाना नस्य बहुकरणं व्रतम् ॥१॥ व्रत है' [ -यह बात इस मन्त्रमें कही गयी है 1॥१॥ इति भृगुवल्ल्यां नवमोऽनुवाकः ॥९॥
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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