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पंचव अनुकाक विज्ञान ही ब्रह्म है-ऐसा जानकर और उसमें ब्रह्मके लक्षण घटाकर भृगुका पुनः वरुणके पास आना और
उसके उपदेशसे पुनः तप करना विज्ञानं ब्रह्मति व्यजानात् । विज्ञानाद्धय व खल्विसानि भूतानि जायन्ते । विज्ञानेन जातानि जीवन्ति । विज्ञानं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति । तद्विज्ञाय पुनरेव वरुणं पितरमुपससार । अधीहि भगवो ब्रह्मेति । त होवाच । तपसा ब्रह्म विजिज्ञासख । तपो ब्रह्म ति । स तपोऽतप्यत । स तपस्तप्त्वा ॥१॥
विज्ञान ब्रह्म है--ऐसा जाना । क्योंकि निश्चय विज्ञानसे ही ये सब जीव उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होनेपर विज्ञानसे ही जीवित रहते हैं और फिर मरणोन्मुख होकर विज्ञानमें हो प्रविष्ट हो जाते हैं। ऐसा जानकर वह फिर पिता वरुणके समीप आया [ और बोला-] 'भगवन् ! मुझे ब्रह्मका उपदेश कीजिये ।' वरुणने उससे कहा-'तू तपके द्वारा ब्रह्मको जाननेकी इच्छा कर । तप ही ब्रह्म है।' तब उसने तप किया और तप करके--॥१॥
इति भृगुवल्ल्यां पञ्चमोऽनुवाकः ॥५॥