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________________ अनु०६] शाङ्करभाष्यार्थ १५७ यथा चालोकविशिष्टा घटा- जिस प्रकार कि प्रकाशयुक्त ग्रुपलब्धिरेवं बुद्धिप्रत्ययालोक घटादिकी उपलब्धि होती है उसी | प्रकार बुद्धिके प्रत्ययरूप प्रकाशसे विशिष्टात्मोपलब्धिः स्यात्तस्मा- युक्त आत्माका अनुभव होता है । 'दुपलब्धिहेतौ गुहायां निहित अतः उपलब्धिकी हेतुभूत गुहामें वह निहित है-इसी बातका यह मिति प्रकृतमेव । तवृत्तिस्था- प्रसङ्ग है । उसकी वृत्ति (व्याख्या) नीये विह पुनस्तत्सृष्ट्वा तदेवा देवा के रूपमें ही श्रुतिद्वारा 'उसे रचकर | वह पीछेसे उसीमें प्रवेश कर गया' नुप्राविशदित्युच्यते । ऐसा कहा गया है। तदेवेदमाकाशादिकारणं कार्य इस प्रकार इस कार्यवर्गको सृष्ट्वा तदनुप्रविष्टमिवान्तर्गहायां रचकर इसमें अनुप्रविष्ट-सा हुआ आकाशादिका कारणरूप वह ब्रह्म बुद्धौ द्रष्ट श्रोत मन्तु विज्ञात्रित्येवं ही बुद्धिरूप गुहामें द्रष्टा, श्रोता, विशेपवदुपलभ्यते । स एव तस्य मन्ता और विज्ञाता-ऐसा सविशेप रूप-सा जान पड़ता है। यही प्रवेशस्तसादस्ति तत्कारणं ब्रह्म। उसका प्रवेश करना है। अतः अतोऽस्तित्वादस्तीत्येवोपलब्धव्यं वह ब्रह्म कारण है। इसलिये उसका अस्तित्व होनेके कारण उसे 'है' तत् । . . . इस प्रकार ही ग्रहण करना चाहिये। तत्कार्यमनुप्रविश्य, किम् ? । उसने कार्यमें अनुप्रवेश करके फिर क्या किया ? वह सत्-मूर्त तस्य सच्च मूर्त त्यच्चामूर्त- | और असंत-अमूर्त हो गया। जिनसार्वात्म्यम् अभवत् । मूर्तामृर्ते ! के नाम और रूपकी अभिव्यक्ति नहीं हुई है, वे मूर्त और अमूर्त तो ह्यव्याकृतनामरूपे आत्मस्थे आत्मामें ही रहते हैं। उन 'मूर्त' अन्तर्गतेनात्मना व्याक्रियेते ए. एवं 'अमूर्त'. शब्दवाच्य पदार्थोको उनका अन्तर्वर्ती आत्मा केवल व्याकृते भूर्तामूर्तशब्दवाच्ये। ते अभिव्यक्त कर देता है । उनके तस्य
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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