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________________ কে জাজ प्राणकी महिमा और मनोमय कोशका वर्णन प्राणं देवा अनु प्राणन्ति ! अनुष्याः पशवश्व थे। प्राणो हि भूतानामायुः । तस्मात्सर्वायुषमुच्यते । सर्वमेव त आयुर्यन्ति ये प्राणं ब्रह्मोपासते । प्राणो हि भूतानामायुः। तस्मात्सर्वायुषमुच्यत इति । तस्यैष एव शारीर आत्मा यः पूर्वस्य । तस्माद्वा एतस्मात्प्राणमयादन्योऽन्तर आत्मा बनोलयः । तेनैष पूर्णः । स वा एष पुरुषविद एव । तस्य पुरुषविधतामन्वयं पुरुषविधः । तस्य यजुरेव शिरः। बग्दक्षिणः पक्षः । सामोत्तरः पक्षः । आदेश आत्मा । अथर्वाङ्गिरसः पुच्छं प्रतिष्ठा । तदप्येष श्लोको भवति ॥ १॥ देवगण प्राणके अनुगामी होकर प्राणन-क्रिया करते हैं तथा जो मनुष्य और पशु आदि हैं [ वे भी प्राणन-क्रियासे ही चेष्टावान् होते हैं ] । प्राण ही प्राणियोंकी आयु (जीवन) है। इसीलिये वह. 'सर्वायुष' कहलाता है। जो प्राणको ब्रह्मरूपसे उपासना करते हैं वे पूर्ण आयुको प्राप्त होते हैं । प्राण ही प्राणियोंकी आयु है। इसलिये वह 'सर्वायुष' कहलाता है । उस पूर्वोक्त ( अन्नमय कोश ) का यही देहस्थित आत्मा है । उस इस प्राणमय कोशसे दूसरा इसके भीतर रहनेवाला आत्मा मनोमय है । उसके द्वारा यह पूर्ण है । वह यह [ मनोमय कोश ] भी पुरुपाकार ही है। उस (प्राणमय कोश) की पुरुषाकारताके अनुसार ही यह भी पुरुषाकार है । यजुः ही उसका शिर है, ऋक् दक्षिण पक्ष है,
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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