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तैत्तिरीयोपनिषद्
[चल्ली २
आकाशात्स्वेन स्पर्शगुणेन पूर्वेण आकाशसे अपने गुण 'स्पर्श' और
| अपने पूर्ववर्ती आकाशके गुण च कारणगुणेन शब्देन द्विगुणो 'शब्द' से युक्त दो गुणवाला वायु चायुः संभूत इत्यनुवर्तते । उत्पन्न हुआ । यहाँ प्रथम वाक्यके
' 'सम्भूतः' ( उत्पन्न हुआ) इस चायोश्च स्वेन रूपगुणेन पूर्वाभ्यां , क्रिया पदकी [सर्वत्र ] अनुवृत्ति की च त्रिगुणोऽग्निः संभूतः । अग्नः ।
हो जाती है। वायुसे अपने गुण 'रूप'
और पहले दो गुणोंके सहित तीन स्वेन रसगुणन पूर्वश्च त्रिभिश्चतु- गुणवाला अग्नि उत्पन्न हुआ । तथा गुणा आपः संभृताः। अदभ्यः अग्निसे अपने गुण 'रस' और
पहले तीन गुणोंके सहित चार स्वेन गन्धगुणेन पूर्वश्चतुर्भिः गुणवाला जल हुआ । और जलसे
अपने गुण 'गन्ध' और पहले चार पञ्चगुणा पृथिवी संभूता ! पृथि
गुणोंके सहित पाँच गुणवाली पृथिवी . व्या ओषधयः । ओपधीम्यो- उत्पन्न हुई । पृथिवीसे ओपधियाँ, ऽन्नम् । अन्नाद्रेतोरूपेण परिणतात्
.. ओषधियोंसे अन्न और वीर्यरूपमें
" परिणत हुए अन्नसे शिर तथा हाथपुरुषः शिरस्पाण्याघाकृतिमान् । पाँवरूप आकृतिबाला पुरुप उत्पन्न
। हुआ । स वा एष पुरुपोऽन्नरसमयो-। वह यह पुरुष अन्नरसमय अर्थात्
अन्न और रसका विकार है। अन्नरसविकारः । पुरुषाकृति-। पुरुषाकारसे भावित [अर्थात् पुरुष-...
के आकारको वासनासे युक्त ] तथा भावितं हि सर्वेभ्योऽङ्गेभ्यस्तेजः
उसके सम्पूर्ण अङ्गोंसे उत्पन्न हुआ र मोदी को तेजोरूप जो शुक्र है वह उसका
वीज है । उससे जो उत्पन्न होता जायते सोऽपि तथा पुरुषाकृतिरेव है वह भी उसीके समान पुरुषाकार
ही होता है, क्योंकि सभीजातियोंमें स्यात् । सर्वजातिषु जायमानानां उत्पन्न होनेवाले देहोंमें पिताके