SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ANO श्रमण सूक्त ८८ - कसेसु कसपाएसु कुडमोएसु वा पुणो। भुजतो असणापाणाइ आयारा परिभस्सइ।। सीओदग समारभे मत्तधोयणछड्डणे। जाइ छन्नति भूयाइ दिट्ठो तत्थ असजमो।। पच्छाकम्म पुरेकम्म सिया तत्थ न कप्पई। एयमट्ठ न भुजति निग्गथा गिहिभायणे।। (दस ६ - ५०, ५१, ५२) जो गृहस्थ के कासे के प्याले, कासे के पात्र और कुण्डमोद (कासे के बने कुण्डे के आकार वाले बर्तन) मे अशन. पान आदि खाता है वह श्रमण के आचार से भ्रष्ट होता है। बर्तनो को सचित्त जल से धोने मे और बर्तनो के धोए हुए पानी को डालने मे प्राणियो की हिंसा होती है। तीर्थंकरो ने वहा असयम देखा है। गृहस्थ के बर्तन मे भोजन करने मे 'पश्चात्कर्म' और 'पुर कर्म' की सभावना है। वह निर्ग्रन्थ के लिए कल्प्य नहीं है। एतदर्थ वे गृहस्थ के बर्तन मे भोजन 5.नहीं करते। VZ..s
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy