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श्रमण सूक्त
श्रमण सक्त
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अहो निच्वं तवोकम्म
सव्वबुद्धेहि वणियं। जा य लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयणं ।।
(दस. ६:२२)
अहो! सभी तीर्थकरी ने श्रमणों के लिए संयम के अनुकूल वृत्ति और देह पालन के लिए एक बार भोजन-इस नित्य तप कर्म का उपदेश दिया है।
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