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श्रमण सूक्त
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तरुणिय व छिवाडि
आमिय भज्जिय सइ ।
देतिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस ।।
तहा कोलमणुस्सिन्न वेलुय कासवनालिय ।
तिलपप्पडगं नीमं
आमग परिवज्जए । ।
(दस ५ (२) : २०, २१)
कच्ची और एक बार भूनी हुई फली देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे इस प्रकार का आहार में नहीं ले सकता।
इसी प्रकार जो उबाला हुआ न हो वह बेर, वंश- करीर, काश्यप- नालिका तथा अपक्व तिल पपडी और कदम्ब - फल न ले ।
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