________________
I
श्रमण सूक्त
६२
।
-
वणीमगस्स वा तस्स
दायगस्सुभयस्स वा। अप्पत्तिय सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा।।
(दस ५ (२) : १२)
-
भिक्षाचरो को लाघकर घर में प्रवेश करने पर वनीपक या गृहस्वामी को अथवा दोनो को अप्रेम हो सकता है। उससे प्रवचन की लघुता होती है।
-
-
-