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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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समण माहण वा वि
किविण वा वणीमग। उवसकमत भत्तट्ठा
पाणहाए व सजए।। त अइक्क-मित्तु न पविसे
न चिट्टे चक्खु-गोयरे। एगतमवक्कमित्ता तत्थ चिट्ठज्ज सजए।।
(दस ५ (२)
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१०, ११)
भक्त या पान के लिए उपसक्रमण करते हुए (घर मे जाते हुए) श्रमण, ब्राह्मण, कृपण या वनीपक को लापकर सयमी मुनि गृहस्थ के घर में प्रवेश न करे। गृहस्वामी तथा श्रमण आदि की आखो के सामने खडा भी न रहे। किन्तु एकान्त मे जाकर खडा हो जाए।
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