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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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अहो जिणेहि असावज्जा
वित्ती साहूण देसिया। मोक्खसाहण हेउस्स साहुदेहस्स धारणा।।
(दस ५ (९) ६२)
कितना आश्चर्य है जिन भगवान ने साधुओं के मोक्षसाधना के हेतुभूत संयमी-शरीर की धारणा के लिए निरवद्यवृत्ति का उपदेश दिया है।
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