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श्रमण सूक्त
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_श्रमण सूक्त
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तहेव सत्तुचुण्णाई
कोलचुण्णाई आवणे। सक्कुलिं फाणियं पूर्व
अन्न वा वि तहाविह।।
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विक्कायमाणं पसढं
रएण परिफासिय। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस।।
(दस ५ (१) : ७१. ७२)
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इसी प्रकार सत्तू, येर का चूर्ण, तिल-पपडी गीला गुड (राव), पूआ. इस तरह की दूसरी वस्तुए भी जो बेचने के लिए दुकान मे रखी हो. परन्तु न विकी हो. रज से स्पृष्ट (लिप्त) हो गई हों तो मुनि देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे--इस प्रकार की वस्तुएं में नहीं ले सकता।
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