________________ श्रमण सूक्त D R - / 364 नो विभूसाणुवाई हवइ, से निग्गथे। (उत्त 16 11) जो विभूषा नहीं करता, शरीर को नहीं सजाता, वह निर्ग्रन्थ है। 365 नो सद्दरूवरसगधफासाणुवाई हवइ, से निग्गथे। (उत्त 16 12) जो शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श मे आसक्त नहीं होता, वह निर्ग्रन्थ है। / . 45437 484 -