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श्रमण सूक्त
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__ श्रमण सूक्त ।
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३३
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न चरेज्ज वेससामते
बंभचेरव-साणुए। बभयारिस्स दतस्स होज्जा तत्थ विसोत्तिया।।
(दस ५ (१):६)
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ब्रह्मचर्य का वशवर्ती मुनि वेश्या वाडे के समीप न जाए। वहा दमितेन्द्रिय ब्रह्मचारी के भी विस्रोतसिका हो सकती है, साधना का स्रोत मुड सकता है।
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