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श्रमण सूक्त
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अहो जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया |
(द ५ (१) ६२ क. ख)
कितना आश्चर्य है कि जिन भगवान् ने साधुओ के लिए निरवद्य भिक्षावृत्ति का उपदेश दिया है।
८३ मोक्खसाहणहेउस्स साहुदेहस्स धारणा ।
(द ५ (१) ६२ ग, घ )
मोक्ष - साधना के हेतुभूत सयमी शरीर के धारण के लिए मुनि आहार करे ।
८४
जइ मे अणुग्गह कुज्जा साहू होज्जामि तारिओ ।
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(द ५ (१) ६४ ग, घ )
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मोक्षार्थी मुनि सोचे- यदि आचार्य और साधु मुझ पर अनुग्रह करे - मेरे द्वारा आनीत भोजन मे सहभागी बने तो मैं निहाल हो जाऊ - मानू कि उन्होने मुझे भवसागर से तार दिया ।