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________________ श्रमण सूक्त - २८ तया जोगे निरुभित्ता सेले सि पडिवज्जई। (द ४ २३ ग, घ) जब मनुष्य लोक तथा आलेक को जान लेता है तब वह योगो (मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्तियो) का निरोध कर शैलेशी अवस्था को प्राप्त होता है। - तया कम्म खवित्ताण सिद्धि गच्छइ नीरओ। (द ४ २४ ग, घ) जब मनुष्य शैलेशी अवस्था को प्राप्त होता हे तब वह कर्म का क्षय कर रज-मुक्त बन सिद्धि को प्राप्त करता है। ३० तया लोगमत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासओ। (द ४ २५ ग, घ) जब मनुष्य सिद्धि को प्राप्त होता है तब वह लोक के अग्र भाग पर प्रतिष्ठित होकर शाश्वत सिद्ध होता है। - ३७६ - -
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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