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श्रमण सूक्त
३०
पवडते व से तस्थ पक्खलंते व संजए ।
हिसेज्ज पाणभूयाइ तसे अदुव
थावरे ||
तम्हा तेण न गच्छेज्जा
सजए सुसमाहिए।
सइ अन्नेण मग्गेण
जयमेव परक्कमे ||
३०
( दस ५ (१) ५, ६)
वहाँ गिरने या लडखडा जाने से वह सयमी प्राणी-भूतोस अथवा स्थावर जीवों की हिंसा करता है, इसलिए सुसमाहित सयमी दूसरे मार्ग के होते हुए उस मार्ग से न जाये। यदि दूसरा मार्ग न हो तो यतनापूर्वक जाये !