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श्रमण सूक्त
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विसप्पे सव्वओधारे बहुपाणविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे
तम्हा जोइ न दीवए । ।
(उत्त ३५ . १२)
अग्नि, फैलने वाली, सब ओर से धार वाली और बहुत जीवो का विनाश करने वाली होती है, उसके समान दूसरा कोई शस्त्र नहीं होता, इसलिए भिक्षु उसे न जलाए ।
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