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श्रमण सूक्त
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सपत्ते भिक्खकालम्मि
असभतो अमुच्छिओ। इमेण कमजोगेण भत्तपाण गवेसए।।
(दस ५(१) . १)
भिक्षा का काल प्राप्त होने पर मुनि असभ्रात और अमूर्छित रहता हुआ इस आगे कहे जाने वाले क्रम-योग से भक्त-पान की गवेषणा करे।
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