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AO श्रमण सूक्त
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इच्चेय छज्जीवणिय
सम्मट्टिी सया जए। दुलह लभित्तु सामण्ण कम्मुणा न विराहेज्जासि।।
(दस ४
२८)
दुर्लभ श्रमण-भाव को प्राप्त कर सम्यक-दृष्टि और सतत सावधान श्रमण पड्जीवनिकाय की कर्मणा-मन, वचन और काया से विराधना न करे।
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