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________________ श्रमण सूक्त ३०६ पुव्विल्लमि चउभाए आइच्चमि समुट्ठिए । भडय पडिले हित्ता वदित्ता य तओ गुरु || पुच्छेज्जा पजलिउडो कि कायव्व मए इह ? | इच्छ निओइउ भते 1 वेयावच्चे य सज्झाए । । वैयावच्चे निउत्तेण कायव्व अमिलाओ । सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्खविमोक्खणे || ( उत्त २६ ८-१० ) सूर्य के उदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग मे भाण्ड - उपकरणो की प्रतिलेखना करे। तदनन्तर गुरु की वन्दना कर - हाथ जोडकर पूछे- अब मुझे क्या करना चाहिए ? भन्ते । में चाहता हू कि आप मुझे वैयावृत्त्य या स्वाध्याय मे से किसी एक कार्य मे नियुक्त करे। गुरु द्वारा वैयावृत्त्य में नियुक्त किए जाने पर अग्लान भाव से वैयावृत्त्य करे अथवा सर्वदु खो से मुक्त करने वाले स्वाध्याय में नियुक्त किए जाने पर अग्लान भाव से स्वाध्याय करे । ३१०
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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