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श्रमण सूक्त
_श्रमण सूक्त
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इंदियत्थे विवज्जित्ता
सज्झायं चेव पचहा। तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे उवउत्ते इरियं रिए।।
(उत्त २४ ८)
मुनि इन्द्रियो के विषयो और पांच प्रकार के स्वाध्याय का वर्जन कर, ईर्या मे तन्मय हो, उसे प्रमुख बना उपयोगपूर्वक चले।
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