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श्रमण सूक्त
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जया सव्वत्तग नाण
दंसण चाभिगच्छई |
तया लोगमलोग च
जिणो जाणई केवली ।।
( दस ४ २२ )
जब वह सर्वत्रगामी ज्ञान और सर्वत्रगामी दर्शन-केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है तब वह जिन ओर केवली होकर लोक- अलोक को जान लेता है ।
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