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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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बालाभिरामेसु दुहावहेसु
न त सुह कामगुणेसुराय । विरत्तकामाण तवोधणाण ज भिक्खुण सीलगुणे रयाण ||
(उत्त १३ १७)
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अज्ञानियो के लिए रमणीय और दुखकर काम-गुणो मे वह सुख नहीं है, जो सुख कामो से विरक्त, शील और गुण मे रत तपोधन भिक्षु को प्राप्त होता है।
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