________________
श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
(२५८ ।
समुद्दगभीरसमा दुरासया
अचक्किया केणइ दुप्पहसया। सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो खवित्तु कम्म गइमुत्तमं गया।।
(उत्त ११ . ३१)
-
समुद्र के समान गम्भीर, दुराशय-जिसके आशय तक पहुचना सरल न हो, शक्य-जिसके ज्ञानसिन्धु को लाधना शक्य न हो, किसी प्रतिवादी के द्वारा अपराजेय और विपुलश्रुत से पूर्ण वैसे बहुश्रुत मुनि कर्मो का क्षय करते उत्तम गति (मोक्ष) मे गए।
-
-