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श्रमण सूक्त
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(२५६
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जहा सा दुमाण पवर
जबू नाम सुदसणा। अणाढियस्स देवस्स एव हवइ बहुस्सए।।
(उत्त ११
२७)
जिस प्रकार अनादृत देव का आश्रय सुदर्शना नाम का जम्बू वृक्ष सब वृक्षो मे श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत सब साधुओ मे श्रेष्ठ होता है।
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