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ASTRI श्रमण सूक्त
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(
१७
सव्वभूयप्पभूयस्स
सम्म भूयाइ पासओ। पिहियासवस्स दतस्स पाव कम्म न बधई।।
(दस ४ ८)
जो सब जीवो को आत्मवत् मानता है, जो सब जीवो को सम्यक-दृष्टि से देखता है, जो आश्रव का निरोध कर चुका है और जो दान्त है, उस श्रमण के पाप-कर्म का बन्धन नहीं होता।
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