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श्रमण सूक्त
॥ १६
जय चरे जय चिट्टे
जय-मासे जय सए। जय भुजतो भासतो पाव कम्म न बधई।।
(दस ४
८)
यतनापूर्वक चलने, यतनापूर्वक खडा होने, यतनापूर्वक बैठने, यतनापूर्वक सोने, यतनापूर्वक खाने और यतनापूर्वक बोलने वाला श्रमण पाप-कर्म का बन्धन नहीं करता।
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